ओ मेघदूत कब आओगे (O Meghdoot!! when thou shall come?)
महाकवि कालिदास को समर्पित...
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घूँघट चेहरे पे खींचे,
हाथों को माथे से लगाए,
एक बंजारे प्रेमी की आस देखती वो सुखी आँखें,
खाली आसमां औऱ बंजर-सी धरती के बीच समय काटते,
वो होंठ, पलके झपका, कुछ बुदबुदाते,
औऱ किसी अप्रत्याशित आगंतुक के आगमन की आस लिये हर एक छोड़ नजर दौड़ाते, थकते,
उदास, निश्वास, दीवार से सिर टिकाए, स्वयं से पूछते,
कि कब आओगे...
ओ मेघदूत! कब आओगे ?
वो वृष्टि संदेश कब लाओगे ?
क्या मेरी व्यथा, व्यथा नहीं ?
या प्रेम विरह हीं सब कुछ है ?
देखो कैसे मरती भूमि
जल बिन तिल तिल जलती भूमि
क्या पंछी-पौधों का मोल नहीं?
या प्रेम प्राण पर भारी है?
ओ थोड़ा मोह दिखा जाओ
थोड़ा राह भटक कर आ जाओ
वो प्रेयसी थोड़ी सी रुठेगी
पर उसको तुम ये बतलाना
कि लाखों मुरझाते जीवन के लिए
इतना सा त्याग जरूरी था
जो आंसू और उनके बह निकले
उनसे साँसो का बहना जरुरी था
इससे उपर क्या विनती-विनय
थोड़ी करुणा तो बरसाओ
बस प्रेम दुआ हीं पाओगे
ओ मेघदूत जब आओगे!
ओ मेघदूत कब आओगे?
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